Friday, September 19, 2008

आप बदल सकते हैं इनकी किस्मत

जिस वक्त आप अपने घर में कंक्रीट की छत के नीचे सुकून भरी ज़िन्दगी का लुत्फ उठा रहे हैं, कोसी अंचल के लाखों लोग शिविरों में, सडक व नहर के किनारे बसी झुग्गियों में और कोसी की अविरल धारा के बीच फंसे अपने मकान की छत पर बैठे सबकुछ बर्बाद हो जाने की हकीकत से तालमेल बिठाने की कोशिश कर रहे हैं।
इन्हें नहीं मालूम कि वह दिन कब आएगा जब फिर से इनके सिर पर छत और पैरों तले जमीन होगी? सरकारी व गैरसरकारी शिविरों में मिलने वाला भोजन कब तक नसीब होगा? दो महीने बाद आ धमकने वाली कंपकंपाती दिन-रातों से कैसे मुकाबला करेंगे? कितने महीनों बाद इनकी खेतों में फसल उगाई जा सकेंगी? बंद पडी दुकानों के ताले कब खुलेंगे? कितने दिनों में हालात बदलेंगे और इन्हें लोग मजदूरी के लिए बुलाने लगेंगे? बाढ़ में बह गए या खो गए इनके पालतू पशुओं का क्या हुआ होगा? इनके हंसुओं, कुल्हाडियों, कुदालों और हल के फाल की धार कब तेज होगी? इनके उस्तरे कब चमकेंगे, कब इनके चाक पर घडे घुमेंगे? इनकी सिलाई मशीन, इनकी धौंकनी, हथकरघे, भटिठयां सब कुछ सपना बनकर रह गया।
पढाई-लिखाई की उम्र वाले बच्चे दिन भर रिलीफ बांटने वाली गाडियों के पीछे भागते रहते है. कोई काम न होने के कारण महिलाएं आपस में झगडती रहती हैं और मर्द इस कोशिश में जुटे रहते हैं कि कहीं से कुछ रिलीफ मिल जाए और ज़िंदगी के दिन कुछ और बढ जाएं। यानी ज़िंदगी ठप है और दिन गुजर रहे हैं।
मगर क्या इन्हें ऐसे ही छोडा जा सकता है? क्या 40 लाख की हताश आबादी को इस दुष्चक्र से बाहर निकालने का कोई रास्ता नहीं? क्या यह आपकी भी जिम्मेवारी नहीं? आप, जिनके घरों के आसपास से कोसी की धारा नहीं बह निकली, जिनके इलाके में कभी भूकंप नहीं आया, कभी सुनामी की तेज लहरों ने आपकी छत न उडा दी, क्या यह आपकी जिम्मेवारी नहीं है, जबकि आपके सिर पर छत है और एक नौकरी, एक व्यवसाय या अच्छी खासी जायदाद है?
आपकी छोटी सी कोशिश एक परिवार को इस दुष्चक्र से बाहर निकाल सकती है। आपके पांच हजार रूपयों के सहयोग से एक घर घर बन सकता है। चार पांच महीने बाद दुअनिया का सिताबी यादव मुस्कुराकर कह सकता है, धन्यवाद सिंहाजी। हो सकता है वह अगले साल ही पांच हजार रूप्ये लेकर आपके दरवाजे पर हाजिर हो जाए।
मगर आज यह एक सपना है। कोसी अंचल के हर पीडित का सपना। कोसी पुनिर्नमाण अभियान का सपना। इस अंचल की एक छोटी सी संस्था सझिया समांग ने यह असंभव सा लगने वाला सपना देखा है। इसके स्वयंसेवक फिलहाल सुपौल जिले के प्रतापगंज ब्लाक के कुछ गांवों में इसी कोशिश में जुटे हैं। मगर काम बहुत बडा है और संसाधन बहुत कम।
हमें मालूम है कि हमारी पहचान बहुत छोटी है और न मालूम हमारी इस अपील पर कितने लोग ऐतबार करेंगे। फिर भी हम यह अपील जारी कर रहे हैं ताकि बाद में यह न लगे कि हमने कोशिश ही नहीं की। और अगर एक भी इंसान हम पर भरोसा कर सकेगा तो कम से कम एक घर तो बस ही जाएगा।
अगर आप हमपर भरोसा करने वालों में से एक हैं तो इस पते पर मेल करें। sajhiasamang@gmail.com

Tuesday, September 16, 2008

APPEAL FOR CONTRIBUTION & DONATION

Friends,
What happened in Bihar in last 27 days is not flood; it is disaster at very large scale. Many announcements of support been done but situation is not improving. It needed lots of effort from all directions. What we are trying to do is very small effort and it is your support at all fronts which energies us to do it in better way. So, it is my appeal to all of you for contribution & donation to the organisation.

You people can give support dirctly to SAJHIA SAMANG on account number given below:

Account Number- 4470 101 000 19229
Bank of India, Saharsa
Postal Address of Sajhia Samang
H/o Mr. A. K. Mishra
Near Maharana Pratap Chawk
Gautamnagar, Gangjala
Saharsa-852201
E mail: sajhiasamang@gmail.com

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hamara kaam

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