Sunday, December 21, 2008

बालू पर फसल उगाने की जद्दोजहद

मधेपुरा जिला मुख्यालय से 16 किमी पुरब है शंकरपुर प्रखंड. इसके रायधीर पंचायत में करीब डेढ़ महीने तक पानी रहा. ऊपरी इलाका होने के कारण पानी यहां ठहरा नहीं. रायधीर बसंतपुर के बीच मुरलीगंज ब्रांच कैनाल में बसंतपुर की ओर अब भी पानी लबालब भरा हुआ है. यहां 20 अगस्त को पानी पहुंचा, लेकिन ऊपरी इलाका होने के कारण रायधीर पंचायत में 27 अगस्त को पानी घुसा. हम बढते हैं कुमारखंड ब्लाक की ओर. इस पूरे इलाके में पिछले एक पखवाडे से सूरज नहीं उग रहा. खराब मौसम ने हमारी राह और दुरुह बना दी थी. पर हमारी यात्रा अनवरत जारी रही, शायद यहां के विकट हालात लगातार हमारी तकलीफों को कम कर देती. कुमारखंड ब्लाक के टेंगराहा परिहारी पंचायत के टेंगराहा गांव की हालत हमें दुर से देखने पर दूसरे गांवों से अच्छी लगी. यहां पानी निकल चुका था. किसान अपने खेतों में काम में लगे थे. हमें खुशी हुई कि चलो अगली फसल होने के बाद इनकी हालत सुधर जायेगी. लेकिन यहां के किसानों के चेहरे से चमक गायब थी. बाढ से लडने की थकान तो थी ही, अनिश्चित भविष्य की चिंता भी इनकी आंखों में साफ पढी जा सकती थी. नदी के किनारे होने के कारण खेतों में कम से कम चार इंच तक बालू भर गया है. इन्हें खेतों से निकाल पाना संभव नहीं दिखता और ऐसी हालत में बीज बोने के बाद फसल क्या होगी, यही चिंता किसानों को खायी जा रही. फिर भी किसान कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि इसके सिवाय उनके पास कोई चारा नहीं. वे इन बालू भरे खेतों में गेहूं लगा रहे हैं. लेकिन हालत यह है कि गेहूं के छोटे छोटे पौधे की पत्तियां जल रहें हैं, भूरे पडते जा रहे हैं. इन किसानों को बीज तक के लिए कोई सरकारी मदद नहीं मिल रही. इस उम्मीद पर कि कुछ तो फसल होगी यह गेहूं की रोपनी तो कर रहे हैं, लेकिन हाइबि्रड बीज का इस्तेमाल इनके बस की बात नहीं. पटवन, सिंचाई की भी इन किसानों को कोई उम्मीद नहीं. खेतों को हुए नुकसान के मुआवजे के तौर पर 4000 रुपये प्रति हेक्टेयर का मुआवजा दिया गया यानी 1600 रुपये बीघा. बाढ में किसानों की खडी फसल तबाह हो गयी. अब उन्हें और फसल होने की उम्मीद नहीं, ऐसे में यह मुआवजा उनकी कितनी मदद कर सकता है, यह सोच पाना भी भयावह है. दूसरे के खेतों में काम करने वाले मजदूरों की दास्तानटेंगराहा गांव का सूरतलाल यादव अपने चार बच्चों के साथ खेतों में जी तोड मेहनत कर रहा था. पूछने पर पता चला कि यह उसकी अपनी जमीन नहीं. बाढ के पहले उसने किसी तरह पैसे जुगाड कर 8000 रुपये लीज पर यह खेत बटैया पर लिया था. बडे अरमान के साथ उसने अधिक पैदावार की उम्मीद में धान की हाइबि्रड बीज बोयी. खाद सहित कुल उसने इन खेतों पर 4500 रुपये खचर् कर डाले. लेकिन बाढ आयी और उसकी पूरी फसल डूब गयी. वह तबाह हो गया. उसे सरकारी मुआवजा भी नहीं मिल सकता, क्योंकि सरकारी नियमों के मुताबिक जमीन के मालिक को ही मुआवजा मिल सकेगा. और जमीन के मालिक उसके साथ जाना नहीं चाहते. वह किसी तरह अपने बालू भरे खेतों में फसल बोने की कोशिश कर अपना नुकसान कम करने की कोशिश तो कर रहा है, लेकिन यह बात भी वह अच्छी तरह जानता है कि यह कोशिश जल्द ही दम तोड देगी।

जिंदगी अब भी है बेपटरी

कटाव रोकने के लिए लोगों ने अपने घरों में बालू की बोरियां लगा रखी हैं.

बाढ का पानी उतरा, तो हर जगह एेसे कटाव बनते चले गये.

सरकारी राहत नहीं पहुंचते देख लोगों ने सामूहिक प्रयास कर बांस के खरपच्ची से पुल बना लिये हैं.


जानवरों की हड्डियों को बेचकर दो जून की रोटी जुटाने की जद्दोजहद जारी है.







तसवीरों के आइने में हाल ए बिहार

खेतों में अब भी जहां तक नजर जाती है पानी ही पानी नजर आता है.

सबकी आंखों में अब आंसू सूख गये हैं.

अब हर ओर यही नजारा देखने को मिलता है.





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hamara kaam

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